महाराष्ट्र का सियासी घटनाक्रम
क्या चंद घंटो में ही बदल गए महाराष्ट्र के राजनैतिक परिदृश्य पर आश्चर्य किया जाना चाहिए ?? शायद कुछ लोगो के लिए ये बड़े आश्चर्य का विषय हो सकता है वो भी शुक्रवार शाम को शरद पंवार की इस घोषणा के बाद कि सेना -एनसीपी -कांग्रेस गठबंधन ने उद्धव ठाकरे के नाम पर गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री के लिए मुहर लगा दी है | लेकिन जो लोग देश के घटनाक्रम पर पेनी नजर रखते है उनके लिए ये बदला हुआ परिदृश्य अधिक चकित कर देने वाला नहीं है | केंद्र सरकार द्वारा सीबीआई और ईडी इस्तेमाल से कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के नेताओ पर दबाव बनाने के साथ देश में एक नयी परंपरा की शुरुवात होती है जिसका सीधा सा सन्देश ये है कि या तो हमारे साथ आ जाओ या भुगतने के लिए तैयार रहो | इस दबाव के आगे कई नेता टूटे भी और पी चिदंबरम जैसे नहीं टूटने वाले नेता भुगत रहे है | यही खेल महाराष्ट्र में भी खेला गया ,शरद पंवार सहित एनसीपी के कई लीडर्स को ईडी द्वारा नोटिस जारी किये गए और राज ठाकरे से तो कई घंटो तक पूछताछ भी की गयी | जब शिवसेना ने भाजपा से किनारा किया तो बीएमसी में शिवसेना के कई लीडर्स पर छापेमारी हुयी | ये सारी घटनाएं बताती है कि भाजपा अपना मकसद हासिल करने के लिए किन किन हथकंडो का इस्तेमाल कर सकती है |
आपको याद होगा सेना -एनसीपी -कांग्रेस गठबंधन को भाजपा और उसके नेताओ सहित तमाम दलाल मीडिया चेनलो ने अवसरवाद ,जनमत के साथ विश्वासघात कहते हुए यही घोषणा की थी कि यदि ये सरकार बनी भी तो चंद महीने ही चल पाएगी | लेकिन अब जब भाजपा अजित पंवार ( एनसीपी नहीं कहूंगा क्योंकि एनसीपी सुप्रीमो शरद पंवार और एनसीपी के महाराष्ट्र अध्यक्ष ने समर्थन से इंकार किया है ) के साथ मिलकर सरकार बनाने की घोषणा कर चुकी है और फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके है ,तो नैतिकता की दुहाई देने वाले तमाम नेताओ और दलाल चेनलो के मुंह पर ताला लगा हुआ है | और नंबर नहीं होने की बात कहकर राज्यपाल के न्योते को ठुकरा देने वाले फडणवीस एक खिचड़ी सरकार नहीं बल्कि स्थिर सरकार देने की बात कह रहे है , गोया बनने वाली सरकार खिचड़ी नहीं होगी और उसकी स्थिरता पर परमात्मा ने मुहर लगा दी है | सवाल ये उठता है कि क्या ये सारा खेल शरद पंवार का है ,जिनकी प्रधानमंत्री से मुलाक़ात के बाद कई लोग संभावना व्यक्त कर रहे है | मुझे लगता है नहीं ,क्योंकि यदि शरद पंवार को समझौता करना होता या दबाव में आना होता तो वे पहले ही आ जाते ,और सबसे बड़ी बात ये कि अपने राजनैतिक जीवन के अंतिम पड़ाव में शरद पंवार इतिहास में ऐसे व्यक्ति के रूप में कभी भी नहीं जाने जाना चाहते होंगे जिसकी विश्वसनीयता संदेहो से भरी हुयी थी | राज्य पाल के न्योते पर सरकार बनाने के लिए और समय मांगना तथा शिवसेना को समर्थन की चिट्ठियां नहीं सौंपना इन बातो को मीडिया चैनल यही कहकर प्रचारित करते रहे है कि शरद पंवार सेना के साथ सरकार बनाना ही नहीं चाहते थे | लेकिन इसका वास्तविक पहलू ये है कि शरद पंवार वर्तमान राजनीतिज्ञों में सबसे अनुभवी लीडर है ,शिवसेना को पूरी तरह भाजपा से अलग करने के बाद वे जानते थे कि अब शिवसेना के साथ अच्छी तरह बार्गेनिंग की जा सकती है जिसे मानना शिवसेना की मज़बूरी थी | और इसीलिए समय लगाया गया जिसके चलते एनसीपी ही नहीं कांग्रेस को भी फायदा हुआ क्योंकि सत्ता का बंटवारा 33 -33 % के आधार पर हुआ ,यदि शरद पंवार अपने से दुगुनी सीटों से भी अधिक रखने वाली भाजपा के साथ जाते है तो उन्हें इससे बहुत कम ही मिलता और वो भी एक एहसान बतौर | शरद पंवार जैसा अनुभवी नेता इसे अच्छी तरह से जानता था | अजीत पंवार का भाजपा के साथ जाना उसकी महत्वाकांक्षा है जिसका सबसे बड़ा कारण ये है कि शरद पंवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले को एनसीपी सुप्रीमो बनाना चाहते है जो उनके भतीजे अजीत पंवार को गवारा नहीं है ,और ये विवाद एक अरसे से चला आ रहा है |
इस घटनाक्रम में जिन बातो पर नजर होनी चाहिए वे ये कि क्यों राज्यपाल ने आननफानन में भाजपा का सरकार बनाने का दावा स्वीकार कर लिया ,क्यों राष्ट्रपति शासन हटाकर ,जब तक देश पूरी तरह जागपाता फडणवीस को मुख्यमंत्री की शपथ दिलवा दी गयी और सबसे बड़ी बात ये कि अपना बहुमत साबित करने के लिए उन्हें कितने दिनों का समय दिया जाता है और स्थिर सरकार का दावा करने वाले फडणवीस किस प्रकार की खिचड़ी पेश करते है | देश को तो इसमें सिवाय घाटे के कुछ नहीं हुआ ,ये दिख रहा है कि महाराष्ट्र की जनता ने एक गठबंधन की सरकार के पक्ष में ही अपना मत दिया था और सरकार गठबंधन की ही बनेगी लेकिन सरकार में शामिल वे लोग जिनके विरुद्ध सीबीआई या ईडी की कार्यवाही होने जा रही थी वो अब नहीं होगी क्योंकि अब वे मि क्लीन बन चुके है | इस घटनाक्रम में कांग्रेस और शिवसेना ने कुछ नहीं खोया (यदि उसके विधायक टूटने से बच जाते है तो ) सबसे अधिक नुकसान एनसीपी का हुआ जो भाजपा के कारण टूट चुकी है और सुप्रिया सुले इसे स्वीकार भी कर चुकी है | अंत में एक अहम बात कि आजादी से पहले यदि किसी राजनैतिक दल का मुस्लिम लीग से सबसे अधिक विरोध था तो वो केवल कांग्रेस थी ,खुद को हिंदूवादी कहने वाली पार्टियों ने तो मुस्लिम लीग के साथ मिलकार प्रांतो में सरकारे बनायीं थी | कांग्रेस की हिन्दू विरोधी छवि तो बनायीं गयी है वस्तुत तो वो एक धर्म निरपेक्ष पार्टी है | शिवसेना बेशक कट्टरवादी संगठन रहा है लेकिन देखे तो इस गठबंधन के दौरान कांग्रेस ने शिवसेना को मजबूर किया कि वो अपना कट्टरवादी रुख परिवर्तित करे जिसकी उसने शुरुवात की भी | यदि कोई कट्टरवादी संगठन कट्टरता छोड़कर धर्म निरपेक्षता की तरफ बढ़ता है तो इससे बेहतर बात इस देश के लिए और क्या हो सकती है | यही नहीं इससे शिवसेना को देश के अन्य हिस्सों में भी अपना जनाधार बढ़ाने में मदद मिलेगी बेशक महाराष्ट्र में ये गठबंधन अपनी सरकार नहीं बना पाया हो लेकिन सेना -एनसीपी -कांग्रेस इन्हे भविष्य की और देखना चाहिए |
नोट -ये लेखक के अपने विचार है इनसे सहमत होना आपके लिए जरुरी नहीं है |
महेंद्र जैन
23 नवम्बर 2019
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